सफरनामा

आयुष कुमार


जिंदिगी एक सफर है इसे जिया करो ,
सुख दुःख है इसकी परिभाषा इसे कबूल करो ।
चलते रहो सदा तुम अपने तय मंजिल तक ,
वर्षा हो या आंधी हो या हो धुप कड़क ।
इस राह में आएंगे कई राही कई साथ छोड़ जायेंगे ,
पर तुम रुक गए तो तुमको सब कोष जायेंगे ।

हॅसो-रो सब करो अपने राही के संग तुम ,
पर ये सफर न थमने दो वर्ना खाख हो जाओ गए तुम ।
इस सफर में राह अनेक है पर तुम सफलता की राह चुनो ,
मेहनत और परिश्रम से अपना ध्वज कायम करो ।

अवसर बहुत है दिल ठंडा न करो ,
अपने पैरों पे फिर खड़े हो के चले चलो ।
सफरनामा को जीना ही जिंदिगी कहते है ,
बहते जाओ नदी की तरह स्थिर तो पत्थर रहते है ।

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